BA Semester-1 Pracheen Bhartiya Itihas - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2636
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।

अथवा
प्राचीन भारत में प्रचलित आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारत में विवाह के विविध प्रकारों की समीक्षा कीजिये।
अथवा
प्राचीन भारत में विवाह के विविध प्रकारों पर विस्तार से लिखिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. हिन्दू विवाह का क्या आशय है?
2. हिन्दू विवाह के अनुष्ठान बताइए।
3. मनुस्मृति में वर्णित विवाहों को स्पष्ट कीजिए।
4. प्राचीन भारत में प्रचलित आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन कीजिए।
5. प्राचीन भारत में विवाह के विविध प्रकारों पर एक टिप्पणी लिखिए।
6. गान्धर्व विवाह पर नोट लिखिए।
7. अनुलोम और प्रतिलोम विवाह पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

हिन्दू विवाह का अर्थ

विवाह एक सर्वव्यापी संस्था है परन्तु हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में विवाह का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। हिन्दुओं में विवाह को संस्कार सभी संस्कारों में प्रमुख है और यह आश्रम व्यवस्था का केन्द्रीय तत्व है। इसके द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थों को पूरा किया जा सकता है, पाश्चात्य विचारकों ने विवाह एक ऐसी संस्था के रूप में माना है जिसका उद्देश्य यौन सन्तुष्टि और सन्तान को जन्म देना मात्र है, परन्तु हिन्दू धर्म में विवाह की एक दूसरी धारणा है। वेस्टर मार्क ने विवाह की परिभाषा दी है- “विवाह एक या अधिक पुरुषों का या एक अधिक स्त्रियों के साथ होने वाला वह संबंध है जो प्रथा अथवा कानून के द्वारा स्वीकृत होता है और जिसमें दोनों पक्षों एवं उनसे उत्पन्न हुए बच्चों के अधिकारों और कर्त्तव्यों का समावेश होता है।

वास्तव में हिन्दू विवाह एक संस्कार है वह एक अस्थायी कानून बन्धन न होकर जीवन भर का धार्मिक बन्धन है। जिसको तोड़ना हिन्दू सामाजिक मूल्यों के विरुद्ध है। यह कोई संविदा न होकर संस्कार • है जिसका उद्देश्य जीवन भर विभिन्न पुरुषार्थों की प्राप्ति का प्रयत्न करना है। पाश्चात्य विचारधारा के विपरीत हिन्दू विचार में यौन सन्तुष्टि को महत्व नहीं दिया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि 'हिन्दू विवाह पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए तथा स्त्री और पुरुष का वह सांस्कृतिक मिलना है जिसका तोड़ना नियम विरुद्ध और अधार्मिक समझा जाता है।

धार्मिक विधि विधान एवं अनुष्ठान

हिन्दू विवाह एक संस्कार है यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि विवाह की संपूर्ण प्रक्रिया धार्मिक विधियों एवं अनेक अनुष्ठानों से परिपूर्ण होती हैं। विवाह के समय जिन प्रमुख अनुष्ठानों एवं संस्कारों को पूरा किया जाता है उनकी संख्या प्रो० पी० वी० काणे ने 39 बतलायी हैं जिनमें से संस्कार के रूप में विवाह की धार्मिक प्रकृति स्पष्ट होती है।

1. वाग्दान - यह विवाह का पहला महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें कन्या पक्ष वाले वर पक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं। आधुनिक युग में यह कार्य वर पक्ष द्वारा किया जाता है। इस अवसर पर वैदिक मंत्रों इत्यादि का उच्चारण होता है।

2. कन्यादान - विवाह के समय कन्या के पिता वर को अपनी पुत्री का दान देता है और उससे यह आश्वासन लेता है कि वह धर्म, अर्थ, काम की पूर्ति में कभी अपनी पत्नी का परित्याग नहीं करेगा और आजीवन उसे अपनी संगिनी बनाये रहेगा।

3. अग्निस्थापन - कन्यादान के पश्चात् वर-वधू के बन्धन को स्थायी बनाने के लिए अग्नि में आहुतियाँ दी जाती हैं और अग्नि से शक्ति एवं सुख की कामना की जाती है।

4. पाणिग्रहण- इसका अर्थ है दूसरे के हाथ को स्वीकार करना। वर-वधू का हाथ पकड़कर मंत्रों का उच्चारण करता है जिसका अर्थ होता है कि मैं तेरा हाथ पकड़कर सुख की कामना करना है, तू वृद्धावस्था तक मेरे साथ रहना, मेरा धर्म तेरा पोषण करना है और मेरे द्वारा सन्तान को जन्म देते हुए तू 100 वर्ष तक जीवित रहना।

5. अग्निसाक्षी - इसके अंतर्गत वर-वधू अग्नि के चारों और परिक्रमा करते हैं और यह कामना करते हैं कि ये दीर्घायु, तेजस्वी और मनस्वी हो, उनके अनेक पुत्र हों और ये 100 वर्ष तक देखें, 100 वर्ष तक जीवित रहें और 100 वर्ष तक सुनते रहें।

6. सप्तपदी - यह अत्यन्त महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें वर-वधू, उत्तर दिशा की ओर 7 कदम आगे बढ़ते हैं और प्रत्येक वेग में क्रमशः अन्न, धन, सुख-सन्तान, प्राकृतिक सहायता और पारस्परिक सखाभाव की कामना करते हैं। साथ ही वे यह भी कामना करते हैं कि दोनों का मन एक-दूसरे के अनुकूल रहे।

उपरोक्त सभी विशेषतायें हिन्दू विवाह को एक धार्मिक संस्कार के रूप में प्रकट करती है। हिन्दू विवाह पूर्णतया धार्मिक जीवन से सम्बद्ध है और इसलिए यह स्पष्ट धार्मिक संस्कार है।

गृहस्थ आश्रम में विवाह के महत्व पर बड़ा बल दिया गया है। तैत्तरीय ब्राह्मण के अनुसार बिना पत्नी के यज्ञ करने का कोई महत्व नहीं है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है - स्त्री पुरुष का आधा अंग पत्नी है। विवाह के बाद ही मनुष्य पूर्ण होता है। धार्मिक कृत्यों को करने के लिए पुनर्विवाह की प्रथा का जन्म हुआ था। अर्थशास्त्र में भी विवाह को एक संविदा के रूप में स्वीकार किया गया है। हिन्दू संस्कारों में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार के रूप में है। मनुस्मृति में निम्न 8 प्रकार के विवाहों का उल्लेख हैं-

1. ब्राह्म विवाह - प्राचीनकाल में यह विवाह सर्वश्रेष्ठ दृष्टि से देखा जाता था। भारतीय हिन्दू समाज में इस विवाह को बड़े आदर्श के साथ देखा जाता था। इस विवाह में कन्या का पिता सुशील तथा संपन्न वर को अपने घर बुलाता था तथा फिर अपनी कन्या का दान करता था। इस प्रकार के विवाह में किसी भी पक्ष में धनलिप्सा न होती थी। ऋग्वेद के अनुसार सोम एवं सूर्य का विवाह इसी रीति से हुआ था। मनुस्मृति में इस प्रकार की परिभाषा निम्न रूप में है

आच्छाद्य चार्यथित्वा च श्रुति शीलता स्वयम्।
आहुय दानं कन्यायां ब्राह्म धर्मः प्रकीर्तियः ॥ "

हर्षकालीन भारत तक इस प्रकार के विवाह का अधिक चलन रहा। आजकल भी इसी विवाह का चलन है, परन्तु आज दहेज प्रथा का इसमें चलन अधिक रूप में हो गया है। दहेज इतना मांगा जाता है कि लड़की वाला इसको दे नहीं पाता है। हजारों कन्यायें इसी बुरी प्रथा के कारण बिना विवाह के मौत की गोद में सो जाती हैं। जिन लड़कियों का विवाह कम दहेज के रूप में होता है, वे बाद में जलाकर मार दी जाती हैं। आज हिन्दू समाज में दहेज प्रथा एक बुरी प्रथा समझी जाने लगी है, परन्तु लड़के वालों की मांगें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।

2. आसुर विवाह - मनुस्मृति के इस धर्म के विषय में कहा गया है

ज्ञातिभ्यो द्राविणं दत्वा कन्याय चैव शस्तितः।
कन्या प्रदानं स्वच्छन्द्यापुरो धर्म उच्चते ॥

इस विवाह में वर पक्ष, कन्या पक्ष को धन दिया करता था। तब इस विवाह से वे पत्नी पति होते थे। यह विवाह गान्धर्व विवाह, राक्षस विवाह तथा पैशाच विवाह के मुकाबले में अच्छा समझा जाता था। विष्णुपुराण में ऋचीक ब्राह्मण द्वारा एक सहस्र अश्व देकर सत्यवती से विवाह करने का उल्लेख है। प्राचीनकाल में इस प्रकार के विवाह का अधिक चलन था।

3. दैव विवाह - इस प्रकार के विवाह का अधिक चलन यज्ञों के समय में बढ़ा। मनुस्मृति से हमें इस विवाह के संबंध में निम्न जानकारी प्राप्त होती है

यज्ञे तु विक्ते सभ्यगृत्वि यजे कर्म कुर्वते।
अलंकृत्य सुतादानं दैव धर्म धर्म प्रत्यक्षते ॥

इस विवाह के अंतर्गत कन्या को दुल्हन बनकर उसको अच्छे कपड़े तथा गहने पहनाकर पुरोहित को दक्षिणा के रूप में उसको दुल्हन के रूप में दे दिया जाता था। कहा जाता है कि च्वयन ऋषि का विवाह ऋषि के साथ इसी रीति के आधार पर हुआ था। बाद में राजा महाराजा अपनी दासियों को दैव-यज्ञों में दक्षिणा के रूप में दान देते थे। जब यज्ञों का पतन हुआ, तब इस प्रकार के विवाह का भी महत्व समाप्त हो गया है।

4. गान्धर्व विवाह - प्राचीनकाल में इस प्रकार के विवाह को कम महत्व प्राप्त था। यह विवाह असुर विवाह से भी कम दर्जे पर था। इस विवाह के अन्तर्गत कन्या तथा वर दोनों अपनी-अपनी इच्छाओं से इस विवाह से पति-पत्नी का रूप धारण करते थे। इस प्रकार के विवाह को मैथुन्य तथा काम संभव के नाम से भी पुकारा जाता था। वर तथा कन्या एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होकर बिना गुरु तथा माता-पिता से आज्ञा लिये हुए विवाह करते थे। प्राचीन भारतीय हिन्दू समाज में इस प्रकार का विवाह भी मान्य था। वात्स्यायान ने इस प्रकार के विवाह को भी सर्वश्रेष्ठ विवाह के रूप में स्वीकार किया है। दुष्यन्त तथा शकुन्तला का विवाह, उदयन तथा वासवदत्ता का विवाह, पुरूरवा तथा उर्वशी का विवाह, पृथ्वीराज चौहान तथा संयोगिता का विवाह इसी पद्धति से हुए थे। प्राचीन हिन्दू समाज में इस प्रकार के विवाह को साधारण जनता कुछ अच्छी दृष्टि से नहीं देखती थी। कभी-कभी ऐसा विवाह कट्टर दुश्मनी का रूप धारण कर लेता था। पृथ्वीराज चौहान और जयचन्द के बीच इसी विवाह के कारण दुश्मनी पैदा हुई। जयचन्द ने मुहम्मद गोरी के द्वारा पृथ्वीराज चौहान के वंश के राज्य को सदा के लिए समाप्त कर दिया। आज के युग में इस प्रकार के विवाह का चलन कुछ बढ़ता हुआ दिखाई पड़ता है। इसको प्रेम विवाह के नाम से पुकारा जाता है। जिसकी शुरूआत बड़ी सुन्दर परन्तु इसका अन्त बड़ा दर्दनाक हुआ करता है।

5. आर्ष विवाह - इस विवाह में वर को एक या दो गायें कन्या के पिता को देनी पड़ती थीं। इसके बाद ही कन्या का पिता इस विवाह के सहारे अपनी कन्या वर को सौंप देता था। अर्थशास्त्र में इस विवाह को गोमिथुन दान आर्ष कहा है। गोमिथुन अर्थात् नामों के जोड़ों का दान देकर ही यह विवाह हुआ करता था। कुछ विद्वानों का मत है कि यह कन्या का मूल्य होता था। परन्तु इस मत को अधिकतर विद्वान स्वीकार नहीं करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वर जो गायें कन्या के पिता को देता था। वे कन्यादान के पश्चात् उसको वापस कर दी जाती थीं। अगस्त्य ऋषि का विवाह लोपा मुद्रा के साथ इसी प्रकार से हुआ था।

6. राक्षस विवाह -

वर राक्षसी प्रवृत्ति धारण करके कन्या को बलपूर्वक अपहरण करके जो विवाह किया जाता था, वह राक्षस विवाह के नाम से प्राचीन हिन्दू समाज में प्रचलित था। इस प्रकार के विवाह के समय युद्ध भी हुआ करता था। वह जब किसी कन्या से विवाह करना चाहता था और कन्या के माता-पिता उससे विवाह करने पर तैयार नहीं होते थे, तब वर पक्ष, कन्या पक्ष पर आक्रमण कर देता था और कन्या को अपहरण करके जबरदस्ती उससे विवाह कर लेता था। अर्जुन तथा सुभद्रा तथा कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह इसी पद्धति के आधार पर हुए थे। मनुस्मृति में इस विवाह का उल्लेख निम्न रूप में है

हत्वा छित्वा य भित्वा य क्रोशन्ती रुदती गृहात।
प्रसह्य कन्या हरतो राक्षसो विधि रुच्यंतो ॥

7. प्रजापत्य विवाह - इस विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा द्वारा वर पक्ष का आदर सत्कार किया जाता था। वर पक्ष के लोग कन्या-पक्ष के घर जाते थे। कन्यादान से पूर्व वर-वधू दोनों ही धर्मानुसार गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए वचन लेते थे। इस विवाह के अंतर्गत कन्यादान एक दान न होकर एक बन्धन के रूप में स्वीकार की जाती थी। दोनों को अपने-अपने अन्तिम घड़ी तक अपना वचन निभाना पड़ता था। पति के साथ पत्नी को भी वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करना पड़ता था।

8. पैशाच विवाह - प्राचीन हिन्दू समाज में इस प्रकार का विवाह सबसे गिरी हुई दृष्टि से देखा जाता था। इस विवाह के अंतर्गत सोती हुई, नींद में मदहोश व उन्मत हुई कन्या का अपहरण करके उसके साथ जो विवाह होता था, उसको पैशाच विवाह के नाम से पुकारा जाता था। हिन्दू धर्मशास्त्रों में इस प्रकार के विवाह को अधर्म विवाह कहा गया है। धर्मशास्त्रों में ऐसे विवाह के पश्चात् उत्पन्न हुई संतान के लिए कहा गया है। “पैशाच विवाह से उत्पन्न बालक क्रूर तथा पापी होते हैं। इस प्रकार के विवाह में न तो प्रेम की भावना होती है और न ही धर्म की भावना हुआ करती है।

प्राचीन भारतीय हिन्दू समाज में ब्राह्मण विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह, प्रजापत्य विवाह सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे।

उस समय अन्तर्जातीय विवाहों का भी चलन था जिनके निम्न दो रूप थे -

अनुलोम विवाह - अनुलोम विवाह का अधिक चलन मौर्य साम्राज्य तथा उसके बाद में युगों में दिखाई देता है। जब उच्च वर्ण का पुरुष वर, निम्न वर्ण की कन्या से विवाह करता था तो उसका अनुलोम विवाह कहते थे। ब्राह्मण वर्ण का वर, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्ण की कन्या से विवाह कर सकता था। वैश्य वर्ण का वर शूद्र वर्ण की कन्या से विवाह कर सकता था। ब्राह्मण ऋषि च्यवन ने क्षत्रिय कन्या सुकन्या के साथ इसी विवाह के अंतर्गत विवाह किया था।

 

प्रतिलोम विवाह - जब उच्च वर्ण की कन्या निम्न वर्ण के पुरुष से विवाह कर लेती थी तो ऐसा विवाह प्रतिलोम विवाह कहा जाता था। हिन्दू समाज में प्राचीनकाल में इस प्रकार के विवाह का चलन बहुत ही कम था। इस प्रकार के विवाह के पश्चात् उत्पन्न होने वाली संतान को वर्ण संस्कार के रूप में मान्यता दी गई है।

याज्ञवल्क्य ने भी अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाहों का उल्लेख किया है। अनुलोम विवाह से उत्पन्न सन्तान पिता वर्ण, जाति की मानी जाती थी और प्रतिलोम विवाह से उत्पन्न सन्तान, अपने पिता एवं माता- की सामाजिक स्थिति से निम्न स्थिति वाली होती थी। कालान्तर में इन विवाहों को घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा।

बहु-विवाह - प्राचीनकाल में बहुविवाह की प्रथा भी प्रचलित थी। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि ब्राह्मण चार स्त्रियों से, क्षत्रिय तीन स्त्रियों से, वैश्य दो स्त्रियों से तथा शूद्र केवल एक स्त्री से विवाह कर सकता था। परन्तु राजा की कई-कई रानियाँ होती थीं। राजा गंगेय देव की सौ रानियाँ थीं।

उस समय तलाक प्रथा नहीं थी। पति की मृत्यु होने पर उसकी विधवा दूसरा विवाह नहीं कर सकती थी, परन्तु उसका देहान्त होने पर उसका पति दूसरा विवाह कर सकता था। बहुविवाह की प्रथा उस समय प्रचलित थी इस पर संदेह नहीं किया जा सकता था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  4. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- 'फाह्यान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  8. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  9. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  10. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  12. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए
  14. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं?
  15. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था व आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  23. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  25. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  26. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  30. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  31. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- वैदिक काल के प्रमुख देवताओं का परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- ऋग्वेद में सोम देवता का महत्व बताइये।
  34. प्रश्न- वैदिक संस्कृति में इन्द्र के बारे में बताइये।
  35. प्रश्न- वेदों में संध्या एवं ऊषा के विषय में बताइये।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में जल की पूजा के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- वरुण देवता का महत्व बताइए।
  38. प्रश्न- वैदिक काल में यज्ञ का महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- पंच महायज्ञ' पर टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- वैदिक देवता द्यौस और वरुण पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक देवता इन्द्र के विषय में लिखिए।
  43. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  44. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  45. प्रश्न- वैदिक काल में प्रकृति पूजा पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- वैदिक संस्कृति की विशेषताएँ बताइये।
  47. प्रश्न- अश्वमेध पर एक टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- आर्यों के आदिस्थान से सम्बन्धित विभिन्न मतों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का विवरण दीजिए।
  50. प्रश्न- आर्य कौन थे? उनके मूल निवास स्थान सम्बन्धी मतों की समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- आर्य परम्पराओं एवं आर्यों के स्थानान्तरण को समझाइये।
  53. प्रश्न- वैदिक कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- ऋत की अवधारणा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- ऋग्वैदिक धर्म और देवताओं के विषय में लिखिए।
  57. प्रश्न- 'वेदांग' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- वैदिक कालीन आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य पर एक निबंध लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक कालीन लोगों के कृषि जीवन का विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल के पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- वैदिक आर्यों के संगठित क्रियाकलापों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- आर्य की अवधारणा बताइए।
  69. प्रश्न- आर्य कौन थे? वे कब और कहाँ से भारत आए?
  70. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में वेदों का महत्त्व बताइए।
  71. प्रश्न- यजुर्वेद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- ऋग्वेद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- वैदिक साहित्य में अरण्यकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आर्य एवं डेन्यूब नदी पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- क्या आर्य ध्रुवों के निवासी थे?
  76. प्रश्न- "आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।" विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- संहिता ग्रन्थ से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  79. प्रश्न- पणि से आपका क्या अभिप्राय है?
  80. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन उद्योग-धन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- क्या वैदिक काल में समुद्री व्यापार होता था?
  84. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में प्रचलित उद्योग-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?
  86. प्रश्न- शतमान पर एक टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- भारत में लोहे की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्थिक जीवन पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- वैदिककाल में लोहे के उपयोग की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- नौकायन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सिन्धु घाटी की सभ्यता के विशिष्ट तत्वों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोग कौन थे? उनकी सभ्यता का संस्थापन एवं विनाश कैसे.हुआ?
  94. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वैदिक काल की आर्यों की सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं?
  96. प्रश्न- वैदिक व सैंधव सभ्यता की समानताओं और असमानताओं का विश्लेषण कीजिए।
  97. प्रश्न- वैदिक कालीन सभा और समिति के विषय में आप क्या जानते हैं?
  98. प्रश्न- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के कालक्रम का निर्धारण कीजिए।
  100. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार की विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता का बाह्य जगत के साथ संपर्कों की समीक्षा कीजिए।
  102. प्रश्न- हड़प्पा से प्राप्त पुरातत्वों का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- हड़प्पा कालीन सभ्यता में मूर्तिकला के विकास का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- प्राग्हड़प्पा और हड़प्पा काल का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राचीन काल के सामाजिक संगठन को किस प्रकार निर्धारित किया गया व क्यों?
  107. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  109. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  110. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  112. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  115. प्रश्न- पुरातत्व अध्ययन के स्रोतों को बताइए।
  116. प्रश्न- पुरातत्व साक्ष्य के विभिन्न स्रोतों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- पुरातत्वविद् की विशेषताओं से अवगत कराइये।
  118. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  119. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  120. प्रश्न- पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के लाभों से अवगत कराइये।
  121. प्रश्न- पुरातत्व को जानने व खोजने में प्राचीन पुस्तकों के योगदान को बताइए।
  122. प्रश्न- विदेशी (लेखक) यात्रियों के द्वारा प्राप्त पुरातत्व के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  123. प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  125. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  126. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  127. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- "सभ्यता का पालना" व "सभ्यता का उदय" से क्या तात्पर्य है?
  129. प्रश्न- विश्व में नदी घाटी सभ्यता के विकास पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- चीनी सभ्यता के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  131. प्रश्न- जियाहू एवं उबैद काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- अकाडिनी साम्राज्य व नॉर्ट चिको सभ्यता के विषय में बताइए।
  133. प्रश्न- मिस्र और नील नदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- नदी घाटी सभ्यता के विकास को संक्षिप्त रूप से बताइए।
  135. प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  136. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
  137. प्रश्न- मेसोपोटामिया की सभ्यता पर प्रकाश डालिए।
  138. प्रश्न- सुमेरिया की सभ्यता कहाँ विकसित हुई? इस सभ्यता की सामाजिक संरचना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता के भारतवर्ष से सम्पर्क की चर्चा कीजिए।
  140. प्रश्न- सुमेरियन समाज के आर्थिक जीवन के विषय में बताइये। यहाँ की कृषि, उद्योग-धन्धे, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रगति का उल्लेख कीजिए।
  141. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  142. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की लिपि का विकासात्मक परिचय दीजिए।
  143. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- प्राचीन सुमेरिया में राज्य की अर्थव्यवस्था पर किसका अधिकार था?
  145. प्रश्न- बेबीलोनिया की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता की सामाजिक.विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
  146. प्रश्न- बेबीलोनिया के लोगों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  147. प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
  149. प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  150. प्रश्न- असीरियन कौन थे? असीरिया की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए बताइये कि यह समाज कितने वर्गों में विभक्त था?
  151. प्रश्न- असीरिया की धार्मिक मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए। असीरिया के लोगों ने कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति की? मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- प्रथम असीरियाई साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?
  153. प्रश्न- "असीरिया की कला में धार्मिक कथावस्तु का अभाव है।' स्पष्ट कीजिए।
  154. प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- प्राचीन मिस्र की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? मिस्र का इतिहास जानने के प्रमुख साधन बताइये।
  156. प्रश्न- प्राचीन मिस्र का समाज कितने वर्गों में विभक्त था? यहाँ की सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- मिस्र के निवासियों का आर्थिक जीवन किस प्रकार का था? विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
  159. प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  161. प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  162. प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
  163. प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  164. प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
  165. प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

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